ज़ुल्फ़ें भी सुना है कि संवारा नहीं करते,
एक तो हुस्न कयामत उसपे होठों का लाल होना।
झुकाकर पलकें शायद कोई इकरार किया उसने,
तुम्हारे लब को छूने का इरादा रोज करता हूँ,
अगर मोहब्बत से पेश आते तो न जाने क्या होता।
रास्तों की उलझन में था हमसफर भी छोड़ गए।
क़यामत देखनी हो अगर चले जाना किसी महफ़िल में,
खुदा माना, आप न माने, वो लम्हे गए यूँ ठहर से,
तुमको याद रखने में मैं क्या-क्या भूल जाता हूँ,
बिछड़ के मुझ से वो दो दिन उदास भी न रहे।
अब तक सबने बाज़ी हारी इस दिल को रिझाने में,
रास्ते पर quotesorshayari तो खड़ा हूँ पर चलना भूल गया हूँ।
कुछ बदल जाते हैं, कुछ मजबूर हो जाते हैं,
समंदर पीर का अन्दर है, लेकिन रो नहीं सकता,